Saturday, September 13, 2025
Hindi Diwas 2025: संघर्ष, साहस और सत्य का संदेश, दिनकर की अमर वाणी | Dr. Suresh K. Pandey
हिन्दी दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता और एकता का उत्सव है। 14 सितम्बर 1949 को जब संविधान सभा ने हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया, तब यह केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक भावनात्मक क्रांति थी। यह वह क्षण था जब करोड़ों भारतीयों की धड़कनों को एक ही भाषा ने जोड़ा।
हिन्दी आज दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लगभग 60 करोड़ लोग इसे मातृभाषा के रूप में बोलते हैं और 120 करोड़ से अधिक लोग इसे समझते हैं। गूगल सर्च, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर हिन्दी कंटेंट का उपभोग अंग्रेजी से भी तेज़ी से बढ़ रहा है। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इंटरनेट पर हिन्दी उपयोगकर्ताओं की संख्या हर साल लगभग 18% की दर से बढ़ रही है, जो इसे डिजिटल युग की सबसे उभरती भाषाओं में से एक बनाती है।
हिन्दी का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं। फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम और त्रिनिदाद जैसे देशों में हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र ने भी हिन्दी में न्यूज़ बुलेटिन प्रसारित करना शुरू किया था, जो इसकी वैश्विक महत्ता का प्रमाण है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में जनता को एकजुट किया। महात्मा गांधी ने हिन्दी को “जन की भाषा” कहा था। आज वही भाषा हमारे लिए रोज़मर्रा की बातचीत, साहित्य, फिल्म, पत्रकारिता, विज्ञान और तकनीक—हर क्षेत्र में सेतु का कार्य कर रही है।
हिन्दी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपनी मातृभाषा को गर्व और सम्मान के साथ अपनाना है। अंग्रेजी आवश्यक है, लेकिन हिन्दी हमारी पहचान है। जब हम हिन्दी में सोचते, बोलते और लिखते हैं, तो हमारी भावनाएँ अधिक गहराई और आत्मीयता से प्रकट होती हैं।
आइए, इस हिन्दी दिवस पर हम सब यह संकल्प लें कि हिन्दी को केवल राजभाषा नहीं, बल्कि अपनी जीवनभाषा बनाएँगे और विश्व मंच पर इसकी प्रतिष्ठा को और ऊँचा उठाएँगे।
Dr. Suresh K. Pandey
SuVi Eye Hospital Kota
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