Wednesday, April 23, 2025

पहलगाम की पुकार, भारत का संकल्प डॉ. सुरेश पाण्डेय जब जल उठी थी घाटी, मासूमों की चीत्कार में, तब काँपी थी रातें भी, उस बेगुनाही की हार में। पर ये भारतभूमि है, जो आँधियों से टकराती है, हर आह में शौर्य भर, फिर से गरज उठ जाती है। जहाँ चाणक्य की बुद्धि, हर षड्यंत्र को कुचलती है, जहाँ मौर्य की तलवार, खुद काल को मसलती है। वहीं से उठती है हुंकार, आतंक के विनाश की, हर ज़हर को पी जाती, ये माटी तप-त्याग की। शिवाजी की छाया में, सिखा है हमने रणकौशल, छल से निपटने का, रण में चलाने का उज्ज्वल अचल। हर किला यहाँ गवाही है, हर घाटी की कहानी है, ये ज़मीं नहीं झुकेगी, जब तक साँसों में रवानी है। झाँसी की रानी की ज्वाला, अब हर बेटी में जलती है, लक्ष्मीबाई का बलिदान, अब तलवारों में पलती है। वो घोड़े की टाप नहीं, स्वतंत्रता की हुंकार थी, जो चिंगारी बन अब, हर नारी में ललकार थी। सुभाष का जयघोष, आज भी दिलों में धड़कता है, “दिल्ली चलो” का नारा, लहू में अंगारे भरता है। उन शहीदों का रक्त, जो भूमि पर अर्पित हुआ, अब वज्र बनकर गिरता है, जब भी भारत अपमानित हुआ। कह दो उन छायाओं में छिपे गद्दारों से, अब हर भारतवासी, बन चुका है अंगारों से। हम भगत हैं, जो हँसकर फाँसी चूमते हैं, हम वो बाण हैं, जो अन्याय को चीर फेंकते हैं। अब न रुकेगा यह देश, न झुकेगा तिरंगा, हर बलिदान बनेगा अब, आतंक पर वज्रअशरंगा। उठो भारतवासियों! ये समय का जयघोष है, माटी के स्वाभिमान का, फिर से समय घोष है। डॉ. सुरेश पाण्डेय #पहलगाम #आतंकवाद

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