Wednesday, April 23, 2025
पहलगाम की पुकार: आतंक के खिलाफ जंग
— डॉ. सुरेश पाण्डेय, नेत्र चिकित्सक, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा
पहलगाम की वादियों में, जहाँ बहारें मुस्कुराती थीं,
जहाँ नदियाँ लोरी गाती थीं, परियाँ सपने बुनती थीं।
उसी धरती पर बरसी अब, नफरत की काली छाया,
मासूमों की चीखों में, डूब गईं वो हरसाया।
कभी जो वादी थी जन्नत, अब मातम में डूबी है,
हर क़दम पर बिखरी हैरानी, हर सांस में एक दूरी है।
बैसरन की घाटी आज, खून से नहाई है,
माँ की ममता, बच्चों की हँसी, सब पर मौत की परछाईं है।
धर्म पूछकर चली गोलियाँ, इंसानियत रो पड़ी,
कायरता की इस काली रात में, इंसानियत हार खड़ी।
विनय नरवाल — नवविवाहित, आँखों में हनीमून का सपना,
पत्नी की गोद में टूटा, जीवन का सबसे प्यारा अपना।
भरत भूषण, संजय, रामचंद्रन... कितने नाम लिखें?
कश्मीर की बर्फ में अब जलते हुए जख्म दिखें।
पर्यटकों की हँसी, अब सन्नाटे में गुम है,
पहलगाम की हवा में अब, बस मातम का धुंआ है घुला।
एक मासूम बच्चा रोता है, माँ की गोद सूनी पड़ी,
उसकी आँखों में सवाल है—क्या मेरी गलती थी बड़ी?
मिट्टी जो चूमती थी क़दम, आज लहू से है लिपटी,
वो कश्मीर, जो था गुलाब, अब काँटों से है सजी।
लेकिन सुनो, ओ कायरों — भारत अब न थमेगा,
हर आँसू का हिसाब होगा, हर ज़ुल्म अब सहेगा न।
मोदी की हुंकार है, शाह का संकल्प भी लोहे-सा,
सेना की रगों में लहू नहीं, अब ज्वाला बहती है जैसे रावे-सा।
फिर से गाएगी ये धरती, शांति का मधुर गीत,
फिर महकेगी ये वादी, बहेगा सौहार्द का मीत।
उठो, जवानों, अब समय है न्याय की मशाल थामने का,
हर शहीद की कुर्बानी को अमर गाथा बनाने का।
पहलगाम की पुकार है ये, दिल से सुनो ज़रा,
आतंक के इस अंधकार में, राष्ट्र प्रेम के दीपक जला।
एक स्वर में बोलो, एक साथ चलो —
भारत को फिर से, आतंकवाद से मुक्त करना है, चले, चलो, चले, चलो!
— डॉ. सुरेश पाण्डेय, नेत्र चिकित्सक, सुवि नेत्र चिकित्सालय,कोटा
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