Friday, January 10, 2025

The Sinistral Surgeon: Turning Challenges into Triumphs in Eye Surgery The operating room, a sanctuary of precision and focus, presents unique challenges for a left-handed surgeon—a "sinistral surgeon" navigating a right-handed world. For me, this humble journey of resilience, adaptability, and innovation began with obstacles but transformed into a story of triumph and mastery. Having performed over 100,000 eye surgeries, I’ve witnessed firsthand how embracing challenges can redefine limitations into extraordinary strengths. During my residency at PGIMER, Chandigarh, I often marveled at the dexterity of my mentors as they performed intricate surgeries. Yet, I quickly realized my own path would be different. As a left-handed trainee, most instruments, surgical setups, and teaching methods felt counterintuitive, tailored for right-handed practitioners. This made me question my abilities at times, but it also fueled a desire to adapt and excel. The real turning point came during my fellowship at Sydney Eye Hospital, under the guidance of the exceptional Dr. E. John Milverton. Dr. Milverton, once a left-handed child, had been compelled by his schoolteachers to become right-handed. Despite the pressures, he emerged as an ambidextrous surgeon whose skills were unparalleled. His mentorship proved invaluable to me. One piece of advice stands out: “Use every moment to practice.” These words shaped my approach to challenges and opportunities alike. Inspired by him, I began using my commute on Sydney’s trains to practice drawing circles and triangles, and even writing my name with my non-dominant right hand. In the wet lab, Dr. Milverton encouraged me to refine suturing techniques, including repairing corneal tears, with my right hand. These deliberate practices helped me develop ambidexterity, a skill that profoundly changed my surgical capabilities. Globally, left-handed surgeons make up only 10% of the population, yet studies suggest they possess unique spatial awareness and problem-solving skills that can provide an edge in complex surgeries. However, the road is far from easy. Instruments like phacoemulsification probes, microscopes, and foot pedals are predominantly designed for right-handed use, often requiring left-handed surgeons to adapt creatively. I vividly recall a challenging cataract surgery involving a patient with traumatic aniridia. Using techniques honed through ambidextrous practice, I completed the procedure successfully, reaffirming the value of resilience and adaptability. My journey as a sinistral surgeon has taught me that left-handedness is not a limitation but an opportunity to innovate and excel. Developing ambidexterity not only enhanced my surgical precision but also broadened my perspective on patient care. As the Director of SuVi Eye Hospital in Kota, I am passionate about imparting these lessons to the next generation. Our observership/training programs emphasize inclusivity, providing equal opportunities for both left- and right-handed residents. By incorporating customized wet lab exercises and advanced simulators, we encourage all trainees to embrace ambidexterity as a transformative skill. The journey wasn’t without emotional challenges. Early in my career, I often felt isolated, grappling with the lack of left-handed mentors and the constant need to adapt to right-handed methods. Research confirms that left-handed trainees frequently report higher levels of anxiety and lower confidence. But with encouragement from mentors like Dr. Milverton, I navigated these obstacles and discovered my unique path. Performing over 100,000 eye surgeries has given me invaluable insights into the importance of resilience and innovation in ophthalmology. Research suggests that left-handed surgeons who develop ambidexterity often demonstrate lower complication rates and greater adaptability in complex procedures. These qualities are particularly valuable in fields like ophthalmology, where precision is paramount. As the medical profession evolves, it is crucial to foster an environment that supports surgeons of all dominant hands. Redesigning instruments, fostering inclusivity, and implementing structured training modules are vital steps to ensure left-handed trainees can thrive. Studies have shown that such initiatives not only improve skill acquisition but also reduce stress and burnout. Reflecting on my humble journey, I realize that left-handedness was never a disadvantage—it was a unique strength waiting to be harnessed. The road to becoming an ambidextrous surgeon was challenging but immensely rewarding. By embracing my uniqueness and pushing beyond conventional boundaries, I discovered that true mastery lies in transforming challenges into opportunities. The sinistral surgeon is not an anomaly but a testament to the diversity, resilience, and innovation within the medical profession. As we continue to push boundaries and redefine what is possible, the contributions of left-handed surgeons will inspire generations to come. Dr. Suresh K. Pandey SuVi Eye Hospital, Kota #SinistralSurgeon #LeftHandedExcellence #AmbidextrousMastery #EyeSurgeryJourney #OphthalmologyInnovation #SuViEyeHospital #DrSureshKPandey #SinistralSurgeon #AmbidextrousMastery #LeftHandedSurgeon #Ophthalmology #ResilienceInSurgery #SuViEyeHospital #DrSureshKPandey #EyeCareExcellence #SinistralSurgeon #AmbidextrousSkills #OphthalmologyJourney #LeftHandedSurgeon #InnovationInSurgery #MentorshipMatters #SurgicalExcellence #MedicalInspiration #SuViEyeInstitute #PrecisionAndCare #DrSureshKPandey #LeftHandedEyeSurgeonDrSureshKPandey
नेत्र सर्जरी सीखने का हुनर: जब कमजोरी बनी सबसे बड़ी ताकत कहते हैं सर्जरी केवल हुनर और अनुभव का खेल नहीं है, यह दृढ़ता और अनुकूलन की कहानी भी है। एक बाएं हाथ के नेत्र सर्जन के रूप में, मेरी यात्रा कई चुनौतियों और सीखों से भरी हुई है। जब मैंने पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ में रेज़िडेंसी की, तो महसूस हुआ कि दुनिया दाएं हाथ के लोगों के लिए डिज़ाइन की गई है। यह चुनौती थी, लेकिन मैंने इसे अवसर में बदलने का फैसला किया। मेरे जीवन में असली मोड़ तब आया जब मैं सिडनी आई हॉस्पिटल में फेलोशिप के दौरान डॉ. ई. जॉन मिल्वर्टन के मार्गदर्शन में आया। वे बचपन में बाएं हाथ से काम करते थे लेकिन स्कूल के दबाव में उन्हें दाएं हाथ से काम करना सीखना पड़ा। उन्होंने मुझे न केवल प्रेरित किया, बल्कि सिखाया कि अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत कैसे बनाना है। उनकी सलाह थी: "हर पल का उपयोग अभ्यास के लिए करो।" डॉ. मिल्वर्टन की बातों से प्रेरित होकर मैंने ट्रेन में सफर करते हुए अपने गैर-प्रमुख हाथ (दाएं हाथ) से सर्कल और त्रिभुज बनाना और अपना नाम लिखने का अभ्यास शुरू किया। वेट लैब में उन्होंने मुझे दाएं हाथ से कॉर्नियल टियर की सिलाई करने का अभ्यास कराया। ये छोटे-छोटे अभ्यास मेरे सर्जिकल हुनर को निखारने में बहुत मददगार साबित हुए। वैश्विक स्तर पर केवल 10% डॉक्टर बाएं हाथ के होते हैं, जिन्हें "सिनिस्ट्रल सर्जन" भी कहा जाता है। हालांकि, अध्ययन बताते हैं कि बाएं हाथ के सर्जन में अद्वितीय स्थानिक जागरूकता और समस्या समाधान क्षमता होती है। लेकिन उनके लिए सर्जरी की ट्रेनिंग के दौरान संघर्ष अधिक होता है, क्योंकि ज्यादातर उपकरण और तकनीकें दाएं हाथ वालों के लिए डिज़ाइन की गई होती हैं। मेरी सर्जिकल यात्रा में सबसे खास पल वह था जब मैंने एक जटिल कैटरेक्ट सर्जरी सफलतापूर्वक की। इस केस ने मुझे सिखाया कि जब आप अपने हुनर और दृढ़ता पर विश्वास करते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। आज, कोटा में सुवि आई इंस्टीट्यूट के निदेशक के रूप में, मैं इन अनुभवों को अगली पीढ़ी के सर्जनों के साथ साझा करने की कोशिश करता हूं। हमारी ट्रेनिंग कार्यक्रम में बाएं और दाएं दोनों हाथ के रेज़िडेंट्स को समान अवसर दिए जाते हैं, ताकि वे अपनी सर्जिकल कला में निपुण बन सकें। मुझे एहसास हुआ है कि बाएं हाथ से शुरू हुई मेरी यात्रा ने मुझे दोनों हाथों से सर्जरी करने में सक्षम बना दिया। यह यात्रा सिर्फ सर्जरी की नहीं थी, यह खुद को नए आयामों तक ले जाने की थी। अगर आप अपनी चुनौतियों को अवसर में बदलना चाहते हैं, तो खुद पर विश्वास करें और हर दिन कुछ नया सीखने का प्रयास करें। Dr. Suresh K. Pandey SuVi Eye Hospital, Kota #नेत्रसर्जन #सर्जरीकीकहानी #प्रेरणादायकयात्रा #बाएंहाथकेसर्जन #सर्जिकलहुनर #सुविआईइंस्टीट्यूट #दोनोंहाथोंसेमहारत #नेत्रचिकित्सा #प्रेरणा #डॉसुरेशपाण्डेय #डॉसुरेशकेपाण्डेय #डॉविदूषीशर्मा #सुवीआईहॉस्पिटलकोटा #बाएंहाथकेसर्जन #नेत्रसर्जरी #सर्जिकलनिपुणता #नेत्रचिकित्सामेंक्रांति #प्रेरणादायकसर्जन #दृष्टिकेलिएनेत्रचिकित्सा #चिकित्सामेंनवाचार

Tuesday, January 7, 2025

खलनायक से नायक का सफर साल 1993, जब "खलनायक" फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया था। हर तरफ बस एक ही गाना गूंज रहा था, "चोली के पीछे क्या है।" संजय दत्त अपनी काली पट्टी और एक आंख ढंके, फिल्म में कुछ ऐसे झूम रहे थे जैसे वह किसी सीक्रेट मिशन पर हों। लेकिन उनकी आँखों की पट्टी को देखकर हमारे दिमाग में एक और तस्वीर उभरती है—1990 के दशक की कैटरेक्ट सर्जरी के बाद मरीज़ों की हालत! वर्ष 1990s के दशक में कैटरेक्ट सर्जरी के बाद मरीज़ों को एक हरी पट्टी पहनाई जाती थी। और हिदायतें? ऐसी लगती थीं जैसे मरीज़ ने कोई कसम खा ली हो—"मोतियाबिन्द ऑपरेशन के बाद लगभग दो माह तक घरों में कम प्रकाश या अँधेरे में रहना, न झुकना, न टी.वी. देखना, न किताब पढ़ना, और हां, एक से डेढ़ माह तक तो नहाना तो भूल ही जाओ!" बेचारे मोतियाबिन्द की सर्जरी करवा चुके मरीज़ इस डर में रहते थे कि अगर आँखों में कुछ इन्फेक्शन आदि हो गया .... आँख की रोशनी चली गई तो.... वे फिर से परिजनों एवं चिकित्सक के सम्मुख खलनायक बन जायेंगे. उन्हें यह भी डर अनवरत सताता था कि खलनायक फिल्म में दिखाए किरदार संजय दत्त की तरह काली पट्टी की तरह उनकी दुनिया में हमेशा के लिये अँधेरा नहीं छा जाए। हरी पट्टी की कहानी: हरी पट्टी सिर्फ एक पट्टी नहीं थी, यह उन दिनों की बड़े चीरे वाली मोतियाबिन्द सर्जरी का प्रतीक थी। मरीज़ को ऐसा महसूस होता था जैसे वह किसी साइलेंट फिल्म का हिस्सा बन गए हों। परिचितों एवं पड़ोसियों का पूछना, "भाईसाहब, आपकी आंख को क्या हो गया?" इस को और भी गंभीर बना देता था। और बच्चों की बात मत पूछिए—वे कभी-कभी मरीज़ को देखकर डर जाते थे जैसे उन्होंने कोई हॉरर फिल्म देख ली हो। दो माह तक घर के अंदर बंद रहना, अंधेरे में बैठे रहना, न झुकना, न उठना। मरीज़ को ऐसा लगता था जैसे वह किसी तपस्या पर निकल आए हों। और अगर गलती से मरीज़ ने नियम तोड़ दिए, तो घरवालों का डायलॉग तैयार रहता था, "कहीं आँख मत कर लेना... रोगी हमेशा इस डर के साये में रहता कि यदि ऑपरेशन के बाद आंखों में कोई भी जटिलता या दुष्प्रभाव (Complications) हुआ तो उसका सारा का सारा दोष रोगी पर डालकर उसे परिजनों द्वारा खलनायक बना दिया जाता।" नायक बनने की शुरुआत: फिर आया छोटे से चीरे से की जाने वाली फेकोइमल्सिफिकेशन और मुलायम प्रीमियम इंट्राओक्युलर लेंस (IOL) का दौर। हरी पट्टी और पुराने लंबे परहेजो का अंत होने लगा। कैटरेक्ट सर्जरी अब डे-केयर प्रक्रिया बन गई। मरीज़ मोतियाबिन्द सर्जरी के बाद सीधा घर जा सकता है.... और आँखों के डॉक्टर की हिदायतें भी बदल गईं—"भाईसाहब, लैंस लग गया है, सात दिन सिर के नीचे से नहाना है, अब आप अख़बार पढ़ सकते हैं, टी.वी. देख सकते हैं, मोबाइल का उपयोग कर सकते हैं।" प्रीमियम (Multifocal, Trifocal and EDOF ) कृत्रिम लेंस के बाद अब चश्में पर भी निर्भरता कम से कम होती जा रही है. आज का मरीज़ जब 'काली पट्टी' वाली फिल्म देखता है, तो हंसता है और सोचता है, "अच्छा हुआ कि फेकोइमल्सिफिकेशन आ गया, वरना मैं भी खलनायक की तरह घूम रहा होता।" खलनायक से नायक बनने का सफर: अब वह दिन गए जब कैटरेक्ट सर्जरी के बाद मरीज़ को महीनों तक नियमों की गाड़ी खींचनी पड़ती थी। अब आधुनिकतम पद्धति से मोतियाबिन्द ऑपरेशन एवं प्रीमियम कृत्रिम लैंस प्रत्यारोपण के बाद मरीज़ नायक की तरह आत्मविश्वास से भरकर अपने काम पर लौट सकता है। न हरी पट्टी, न पुरानी हिदायतें। यह नेत्र चिकित्सा विज्ञान की साइलेंट क्रांति है, जो करोड़ों रोगियों को नया प्रकाश दे रही है.... डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी शर्मा सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा From Villain to Hero: A Journey Through Cataract Surgery Evolution The year was 1993, and Bollywood was abuzz with the blockbuster movie Khalnayak. The iconic song "Choli Ke Peeche Kya Hai" was on everyone’s lips, and Sanjay Dutt's menacing look with a black eye patch became a signature style. But while Sanjay Dutt grooved with his patch, it evoked a starkly different memory for many Indians—cataract surgery patients from the 1990s. The Days of the Green Bandage (Green Patti) Back in the '90s, cataract surgery was a major ordeal. Patients were sent home with a green bandage covering their eyes, symbolizing a long and restrictive recovery. The post-operative instructions? A list of strict prohibitions: no bending, no TV, no reading, and certainly no bathing for nearly two months! The fear of complications loomed large—any mishap could lead to permanent blindness, making patients feel like villains in their own homes. For these individuals, life after cataract surgery was shrouded in fear and darkness. Neighbors would ask, "What happened to your eye?" Children would stare as if they'd seen a character from a horror movie. Patients often found themselves explaining their condition repeatedly, adding emotional stress to their physical discomfort. These were the reasons why most patients feared undergoing cataract surgery very much. Many of these became blind due to complications such as phacomorphic glaucoma, etc. A Silent Revolution Then came the game-changer: phacoemulsification and foldable intraocular lenses (IOLs). This breakthrough transformed cataract surgery into a quick, efficient, and minimally invasive procedure. The once-dreaded surgery became a day-care process, with patients returning home the same day. The bulky green bandage was replaced with a simple protective transparent glasses. Post-surgery instructions became far more lenient: "You can read the newspaper, watch TV, and even use your smartphone within a day. Just avoid headbath and getting water in your eyes for a week." Premium lenses—multifocal, trifocal, and extended depth of focus (EDOF)—have further minimized dependency on glasses, offering patients sharper vision and a better quality of life. From Villain to Hero Today, cataract surgery patients look back at the '90s era of green bandages with relief and amusement. They no longer fear becoming a khalnayak (villain) to their families due to complications or restrictions. Instead, they emerge as confident heroes, resuming their daily lives with enhanced vision and a renewed sense of independence. This transformation is nothing short of a silent revolution in ophthalmology, bringing light to millions and rewriting the narrative of cataract surgery from one of fear to one of hope and empowerment. Dr. Suresh Pandey Dr. Vidushi Sharma SuVi Eye Hospital, Kota #CataractRevolution #EndOfGreenPatch #Phacoemulsification #FromVillainToHero #ModernCataractSurgery #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #SuViEyeHospitalKota #कैटरेक्टक्रांति #हरीपट्टीकाअंत #फेकोइमल्सिफिकेशन #खलनायकसेनायक #आधुनिककैटरेक्टसर्जरी

Monday, January 6, 2025

मोतियाबिंद सर्जरी एवं कृत्रिम लेंस प्रत्यारोपण विश्व में हर साल सबसे अधिक की जाने वाली सर्जरी है। दुनिया भर में हर साल करीब 3.5 करोड़ और भारत में 84 लाख से अधिक मरीज मोतियाबिंद सर्जरी और कृत्रिम लेंस प्रत्यारोपण करवाते हैं। यह प्रक्रिया लाखों लोगों को दृष्टिहीनता के अंधकार से बाहर निकालकर उनके जीवन में नई रोशनी और उम्मीद लेकर आती है। राजस्थान पत्रिका में आज प्रकाशित खबर में बताया गया कि कैसे माइक्रो इनसिजन कैटरेक्ट सर्जरी और प्रीमियम फोल्डेबल इंट्राओक्यूलर लेंस ने इस सर्जरी को सरल, तेज, और अधिक प्रभावी बना दिया है। अब मोतियाबिन्द सर्जरी इतनी उन्नत हो चुकी है कि मरीज सर्जरी के कुछ घंटों के भीतर अस्पताल से छुट्टी लेकर अगले ही दिन से अपनी सामान्य दिनचर्या फिर से शुरू कर सकता है। तकनीकी प्रगति के चलते 2.8 से 2.2 (या उससे भी कम) मिमी के छोटे चीरे के माध्यम से बिना टांकों के लेंस प्रत्यारोपण संभव हो गया है। फेकोइमल्सिफिकेशन जैसी तकनीकों ने मोतियाबिंद सर्जरी को न केवल आसान बनाया है, बल्कि मरीजों के लिए रिकवरी को भी बेहद सहज कर दिया है। यह बदलाव नेत्र चिकित्सा विज्ञान में शोध और नवाचार का एक अभूतपूर्व परिणाम है, जिसने मरीजों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के साथ-साथ उनके दृष्टि सुधार के सफर को बेहद सरल बना दिया है। डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ. विदुषी शर्मा सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा #मोतियाबिंदसर्जरी #दृष्टिफिरसेपाना #नेत्रचिकित्सा #फेकोइमल्सिफिकेशन #सूक्ष्मचीरासर्जरी #आधुनिकआईकेयर #सुवीआईहॉस्पिटल #डॉसुरेशकेपांडेय #डॉविदूषिशर्मा #राजस्थानपत्रिका #कोटा #दृष्टिबचाओ #आंखोंकीदेखभाल #उन्नतनेत्रचिकित्सा Cataract surgery is the most commonly performed surgical procedure in the world. Every year, approximately 3.5 crore patients worldwide and more than 84 lakh patients in India undergo cataract surgery and intraocular lens implantation. This procedure has restored vision and hope to millions of people, bringing light into lives that were once engulfed in darkness. As reported in Rajasthan Patrika today, advancements in micro-incision cataract surgery and premium foldable intraocular lenses have made this surgery simpler, faster, and more effective than ever before. With these advancements, patients can now be discharged within a few hours of surgery and resume their normal activities the very next day. Innovations such as phacoemulsification and small-incision techniques, requiring incisions as small as 2.2 to 2.8 mm, have eliminated the need for stitches and ensured a remarkably smooth recovery process. These developments are a testament to the relentless efforts in ophthalmic research and innovation, revolutionizing cataract surgery and transforming millions of lives by restoring vision with unprecedented ease and efficiency. Dr. Suresh K. Pandey Dr. Vidushi Sharma SuVi Eye Hospital, Kota #CataractSurgery #Phacoemulsification #MicroincisionCataractSurgery #PremiumIOL #VisionRestoration #EyeCare #SuViEyeHospital #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #RajasthanPatrika #Kota #OphthalmologyInnovations #RestoringSight #AdvancedEyeCare

दृष्टि की बहाली, मुस्कान का संगम: सटीकता और संवेदनशीलता का मेल | सुवि आई...

दृष्टि की बहाली, मुस्कान का संगम: सटीकता और संवेदनशीलता का मेल मोतियाबिंद सर्जरी केवल दृष्टि लौटाने की प्रक्रिया ही नहीं है, यह मरीजों को समझने और उनकी देखभाल करने का एक तरीका है। ऑपरेशन थियेटर में कदम रखना किसी भी रोगी के लिए भी डराने वाला हो सकता है, लेकिन कभी-कभी उनकी यादों, उनकी सामाजिक या आध्यात्मिक रुचियों या परिवार के बारे में छोटी-सी बातचीत उस डर को विश्वास में बदल सकती है। हर नेत्र सर्जरी एक प्रक्रिया से कहीं अधिक होती है—यह रोगी के साथ जुड़ाव (Connection) का एक अवसर होती है। ऑपरेशन की सटीक प्रक्रिया के बीच, हल्की-फुल्की बातचीत, रोगी की रुचि के अनुसार कविताओं और शेर-ओ-शायरी के माध्यम हम ऑपरेशन थियेटर को एक गर्मजोशी और सकारात्मकता से भरा अविस्मरणीय अनुभव देने का प्रयास करते हैं। इस वीडियो में देखिए ऐसी ही सुवि आई हॉस्पिटल, कोटा में संपन्न मोतियाबिन्द ऑपरेशन एवं जॉनसन एंड जॉनसन के सिनर्जी लेंस प्रत्यारोपण की एक झलक, जहां विशेषज्ञता और संवेदनशीलता का मेल होता है, जहां दृष्टि लौटाई जाती है मुस्कान और भरोसे के साथ। चिकित्सक के पास प्रत्येक रोगी बहुत विश्वास एवं उम्मीद के साथ जाता है। उन्नत तकनीक को मानवीय जुड़ाव के साथ अपनाते हुए हम चिकित्सकों का उद्देश्य मरीजों को केवल स्पष्ट दृष्टि ही नहीं, बल्कि देखभाल का विश्वास भी देना है। यही देखभाल और विश्वास सुवि नेत्र चिकित्सालय का मिशन स्टेटमेंट "कुशल देखभाल, संवेदनशीलता के साथ" (Competent Care with Compassion) को पूर्ण रूप से सार्थक करता है। डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ. विदुषी शर्मा सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा Restoring Vision, Rekindling Smiles: A Personal Touch in Precision Cataract surgery is a journey that goes beyond restoring vision—it’s about making patients feel seen, heard, and cared for. Walking into an operating room can be overwhelming, but sometimes, all it takes to soothe those nerves is a friendly conversation. Talking about their favorite memories, passions, or loved ones creates a comforting bond, turning anxiety into trust. Every eye surgery is more than a procedure—it’s an opportunity to connect. Amidst precise surgical steps, we engage patients with lighthearted chats and poetic shayari, transforming the operating room into a space filled with warmth, smiles, and positivity. Here’s a glimpse of one such moment, where expertise meets empathy, science meets art, and vision is restored with joy after Cataract surgery and implantation of Synergy IOL from Johnson and Johnson. At SuVi Eye Hospital Kota, we blend cutting-edge technology with a compassionate approach as per its mission statement "Competent Care with Compassion". Using premium intraocular lenses, we aim to give our patients not only the gift of clear vision but also the assurance of care. Dr. Suresh K. Pandey Dr. Vidushi Sharma SuVi Eye Hospital Kota #CataractSurgery #SynergyLens #JohnsonAndJohnson #DrSureshKPandey #SuViEyeHospitalKota #DrVidushiSharma #EmpathyInMedicine #PoetryInSurgery #HealingWithCare #RestoringVisionWithHeart #मोतियाबिंद_सर्जरी #सिनर्जी_लेंस #जॉनसन_एंड_जॉनसन #डॉसुरेशकेपाण्डेय #सुविआईहॉस्पिटलकोटा #डॉविदुषीशर्मा #संवेदनशीलता_से_इलाज #शायरी_और_सर्जरी #देखभाल_के_साथ_चिकित्सा #दृष्टि_और_भरोसा #CompetentCarewithCompassion

Sunday, January 5, 2025

"है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में? मानव जब जोर लगाता ह...

"है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में? मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।" रामधारी सिंह दिनकर की यह कालजयी कविता हमें याद दिलाती है कि असंभव शब्द सिर्फ़ हमारी कल्पना का हिस्सा है। जब एक दृढ़ संकल्पित मानव अपनी पूरी शक्ति और विश्वास के साथ किसी कार्य में लग जाता है, तो रास्ते में आने वाली हर बाधा पानी की तरह बह जाती है। जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे वह चिकित्सा हो, विज्ञान हो, शिक्षा हो या व्यक्तिगत संघर्ष, यह कविता हमें आत्म-विश्वास और अटूट मेहनत का महत्व सिखाती है। जब हम अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते हैं, तो हर बाधा, हर कठिनाई हमारे संकल्प के आगे झुकने को मजबूर हो जाती है। यह संदेश सिर्फ़ कविता नहीं, बल्कि एक जीती-जागती प्रेरणा है, जो हर दिल को झकझोर देती है। यह याद दिलाती है कि सफलता उन्हीं के कदम चूमती है जो अपने सपनों के लिए पूरी तरह समर्पित होते हैं। "जहां विश्वास होता है, वहां रास्ते खुद बनते हैं। जहां संकल्प होता है, वहां मुश्किलें खुद हट जाती हैं। और जहां मेहनत होती है, वहां पत्थर भी पानी बन जाता है।" अपने जीवन के हर कदम पर यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हम अपनी सीमाओं से परे जाकर अपने सपनों को साकार करें। आज, हमें यह प्रण लेना चाहिए कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, हम अपने लक्ष्य की ओर निडर होकर बढ़ते रहेंगे। #RamdhariSinghDinkar #Motivation #Inspiration #SuccessMantra #DreamBigFlyHigh #BelieveInYourself #SuvEyeHospital #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #KotaInspiration #PatharPaniBanJataHai** "Who dares obstruct the path of a determined soul? When a human exerts their full strength, even stone turns to water." These timeless words by the legendary poet Ramdhari Singh Dinkar remind us of the infinite potential within us. They resonate deeply, echoing the truth that no obstacle is insurmountable for a heart filled with determination and a mind resolute in its purpose. Life is a journey of challenges and triumphs, and every step demands courage and unwavering faith. When we dedicate ourselves fully to our dreams, the seemingly impossible becomes achievable. The path may be rocky, but persistence and belief transform it into a smooth passage. This poem is more than just an artistic expression; it is a call to action, urging us to rise above doubts, fears, and barriers. It inspires us to remember that every great achievement is born out of resilience, hard work, and a belief in the extraordinary power of the human spirit. "Where there is belief, paths unfold. Where there is determination, obstacles dissolve. And where there is effort, even stone turns to water." Let this message fuel your resolve to chase your dreams fearlessly. Commit to turning every challenge into an opportunity and every obstacle into a stepping stone toward success. The strength to shape your destiny lies within you—unleash it and inspire the world. #RamdhariSinghDinkar #Motivation #Inspiration #PathToSuccess #DreamBigFlyHigh #StoneTurnsToWater #BelieveInYourself #HardWorkPaysOff #SuvEyeHospital #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #KotaInspiration

हर चुनौती को अवसर बनाइए, हर बाधा को अपनी ताकत - Dr. Suresh K. Pandey

"वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आए कुछ और निखर।" रामधारी सिंह दिनकर की इन पंक्तियों में छिपा है संघर्ष का सार और आत्मा का अडिग विश्वास। यह कविता हमें सिखाती है कि कठिनाइयाँ हमें रोकने के लिए नहीं, बल्कि हमें और मजबूत और निखरने के लिए आती हैं। जीवन में हर बड़ा लक्ष्य पाने के लिए हमें धैर्य, साहस, और अनवरत प्रयास की आवश्यकता होती है। जैसे पांडवों ने अपने निर्वासन में कठिनाइयों को अपनी ताकत बनाया, वैसे ही हर इंसान अपने संघर्षों से एक नई ऊंचाई तक पहुंच सकता है। संघर्ष के क्षण हमें हमारी असली क्षमता से परिचित कराते हैं। वे हमें निखारते हैं, हमें एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास देते हैं। यह कविता हमें हर बाधा को गले लगाने और हर मुश्किल को पार करने का हौसला देती है। "मुश्किलें चाहे जितनी हों बड़ी, सपनों की राह हो चाहे कड़ी, हर चुनौती से जूझकर, एक नई कहानी गढ़ें।" आज, इस प्रेरणा को अपने जीवन में अपनाइए। हर चुनौती को अवसर बनाइए, हर बाधा को अपनी ताकत। याद रखिए, दुनिया उन्हीं का सम्मान करती है, जो गिरकर फिर उठते हैं और अपने सपनों को सच करते हैं। #RamdhariSinghDinkar #Motivation #Inspiration #RashmiRathi #NeverGiveUp #DreamBigFlyHigh #SuvEyeHospital #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #KotaInspiration #SuccessThroughStruggle "Wandering in the forest for years, embracing every obstacle and strife, Facing scorching heat, rains, and stones, the Pandavas emerged brighter in life." These lines by Ramdhari Singh Dinkar beautifully capture the essence of resilience and unyielding determination. They remind us that challenges are not meant to deter us but to refine and strengthen us. In the journey of life, every great achievement demands patience, courage, and relentless effort. Just as the Pandavas transformed their adversities into stepping stones, we too can rise above every hurdle to achieve greatness. Moments of struggle reveal our true potential, molding us into stronger, more resilient versions of ourselves. This poem inspires us to embrace every difficulty with open arms, knowing it will only make us shine brighter. "No matter how big the challenges, No matter how tough the road, Rise above every obstacle, And craft a story untold." Let this timeless wisdom motivate you to face every difficulty with courage and turn each one into an opportunity for growth. The world honors those who rise after every fall, who chase their dreams despite the odds, and who carve their path with persistence and resolve. #RamdhariSinghDinkar #Inspiration #MotivationalPoetry #RashmiRathi #BelieveInYourself #NeverGiveUp #SuvEyeHospital #DrSureshKPandey #DrVidushiSharma #KotaMotivation #StrengthInStruggle