Friday, April 18, 2025
जब भरोसा टूटता है, तो सिर्फ जानें नहीं जातीं—आशाएँ भी मर जाती हैं...
भारत में विशेषज्ञ चिकित्सक होना सिर्फ एक पेशा नहीं, एक मिशन है—एक व्रत, जिसमें हर सांस दूसरों की ज़िंदगी बचाने के लिए समर्पित होती है। लेकिन जब कोई फर्जी व्यक्ति इस पवित्र व्रत का चोला पहनकर मासूम ज़िंदगियों से खिलवाड़ करता है, तो सिर्फ मौतें नहीं होतीं—हर असली चिकित्सकों का मान-सम्मान भी दांव पर लग जाता है।
दमोह की घटना—जहाँ एक जालसाज़ ने खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताकर सात लोगों की जान ले ली—हमारे पूरे चिकित्सा तंत्र को झकझोर देने के लिए काफी होनी चाहिए। यह केवल एक खबर नहीं, यह एक सिस्टम फेल्योर है। यह सवाल है कि हम कितने सतर्क हैं? क्या कोई भी यूं ही विशेषज्ञ या परम विशेषज्ञ 'डॉक्टर' बन सकता है?
आज चंबल सन्देश में प्रकाशित डॉ. विदुषी शर्मा का विशेष लेख एक आईना है—जो हमें अपने स्वास्थ्य ढांचे की दरारें दिखाता है। यह लेख पढ़िए, सोचिए, और सवाल उठाइए—क्योंकि बदलाव तभी आता है जब हम चुप रहना छोड़ते हैं।
– डॉ. सुरेश पाण्डेय, कोटा
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