Saturday, March 9, 2024

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जानिए ‘साइलेन्ट साइट स्नैचर’ (ग्लूकोमा) के बारे में.... डाॅ. सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी शर्मा सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा दिनांक 10 मार्च से 16 मार्च 2024 तक विश्वभर में विश्व ग्लूकोमा सप्ताह (वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक) मनाया जा रहा है। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 2024 की थीम है ‘यूनाईटिंग फाॅर ए ग्लूकोमा फ्री वर्ल्ड’। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह का मुख्य उद्देश्य आमजन को ग्लूकोमा (काला पानी/काला मोतिया/काँच बिन्द) के खतरों से अवगत कराना है, जिससे शीघ्र निदान जाँच एवं नियमित उपचार से ग्लूकोमा द्वारा होने वाली अन्धता को रोका जा सके। सामान्यत आँखों का दबाव (इंट्राआॅकुलर प्रेशर) दस से बीस मिमी ऑफ मर्करी होता है। यदि आँखों का दबाव बाईस मिमी ऑफ मर्करी या उससे अधिक पाया जाता है तो ग्लाकोमा होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में आँखों की विस्तृत जांच नेत्र चिकित्सक से करवाना जरूरी होता है। इन जांचों में मुख्य हैं आँखों के दबाव की 24 घंटों के अंतराल में जांच, सेंट्रल कॉर्नियल थिकनेस यानि कि कॉर्निया की मोटाई की जांच (पैकीमेट्री), गोनियोस्कोपी यानि की आँखों के एंगल की जांच, आँख की नस की जांच, दृष्टि के दायरे की जांच (विजुवल फील्ड), आदि। ग्लूकोमा या काला पानी आँख की ऐसी बीमारी है जिसमें आँख की दृष्टि तंत्रिका (ऑप्टिक नर्व) की कोशिकाऐं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। अधिकतर मरीजों में यह बीमारी आँख के अन्दर का प्रेशर (इन्ट्रा आॅकुलर प्रेशर) बढ़ने के कारण होती है। कुछ मरीजों में नस में रक्त प्रवाह करने वाली छोटी-छोटी शिराओं के दबाव के कारण या अन्य कारणों से भी ऑप्टिक नर्व में नुकसान हो सकता है। यदि काले पानी का इलाज समय पर नहीं किया गया, तो ऑप्टिक नर्व (दृष्टितंत्रिका) को काफी नुकसान पहुँच सकता है। काला पानी के कारण जो रोशनी चली जाती है वह इलाज से अक्सर वापस नहीं आती। ’ग्लूकोमा क्यों होता है?’ एक साफ तरल पदार्थ जिसे अक्वेयस ह्नयूमर कहते हैं आँख के अन्दर बहता रहता है, जो लैन्स, आयरिस और कोर्निया को पोषण देता है। इसके बहाव का संचालन करने वाले नाजुक जाल में कोई खराबी आ जाए (ओपन एंगल ग्लूकोमा) या बिल्कुल बन्द हो जाए (क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा), तो इस तरल पदार्थ का आँखों से निकास प्रभावित होता है और आँख का प्रेशर बढ़ने लगता है। इसी दबाव के बढ़ने से ग्लूकोमा होता है। ग्लूकोमा दो प्रकार का होता हैः- 1. ओपन एंगल ग्लूकोमा यानि कि खुला कोण ग्लूकोमा- इस ग्लूकोमा में आँख का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ता है और मरीजों को अक्सर अपनी बीमारी का एहसास नहीं होता। काफी अग्रिम चरण तक पहुँचने के पहले, लक्षणों के कोई संकेत नहीं दिखाई देते। पर तब तक नजर के क्षेत्र में कभी भी न ठीक होने वाला नुकसान हो चुका होता है। इलाज न किए जाने पर यह बढ़कर पूरा अन्धापन (ब्लाइंडनेस) भी कर सकता है। 2. क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा यानि की बंदकोण ग्लूकोमा- इस बीमारी में आँख के अक्वेयस ह्नयूमर का प्रवाह अचानक रूकने के कारण, आँख का प्रेशर काफी बढ़ जाता है। ऐसे रोगियों को आँखों में दर्द, सिरदर्द, उल्टी होना, धुंधला, नजर आना, प्रकाश के स्रोतों के चारों और रंगीन गोल घेरा आदि लक्षण दिखाई देते हैं। यह एक इमरजेंसी है और तुरन्त उपचार के अभाव में ऐसे रोगियों में पूर्ण अंधता हो सकती है। बंद कोण ग्लूकोमा से पीड़ित कुछ रोगी तेज सिरदर्द, आँखों के आसपास दर्द, उल्टी होने के कारण न्यूरोलॉजिकल व्याधि समझकर न्यूरोलॉजी विभाग में भी भर्ती हो जाते हैं। आँखों के दबाव की जांच करने से इन रोगियों का आई प्रेशर बहुत बढ़ा पाया जाता है। ’ग्लूकोमा किसको हो सकता है?’ छोटे बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक किसो को भी ग्लूकोमा हो सकता है। हम सभी के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपनी आँख की नियमित जाँच (आँखों के दबाव, आंख की नस की जांच) करवानी चाहिए। कुछ स्थितियाँ ऐसी है जिनके कारण कुछ लोगों के लिए कालापानी होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है, जैसे किः- - आपकी आयु 45 वर्ष से अधिक है और अपनी आँख की नियमित जाँच नहीं करवाते। - आपके परिवार में किसी को ग्लूकोमा हो चुका है। आँखों में चोट लगने की हिस्ट्री है अथवा आँखों के पर्दे का आपरेशन हो चुका है। यदि आप स्टेरॉइड्स आई ड्रॉप्स का उपयोग लम्बे समय बिना चिकित्सक के परामर्श से कर रहें हैं तो ग्लूकोमा होने का खतरा बढ़ जाता है। - मायोपिया (लघुदृष्टि), डायबिटिज व ब्लड प्रेशर, थायरॉइड, के रोगियों को ग्लूकोमा रोग होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है। ’ग्लूकोमा का निदान’ आँखों के स्वास्थ्य की जाँच के लिए आँखों का वार्षिक परीक्षण जरूरी है। कालापानी की जाँच के लिए यह जरूरी है कि सामान्य परीक्षण के अतिरिक्त, आँखों के इंट्रा ओकुलर प्रेशर एप्लेनेशन टोनोमेट्री द्वारा जांच, आंख की नस की फंडोस्कोपी जांच और नजर के क्षेत्र की पेरीमेट्री नामक जाँच भी करवाई जाए। ’ग्लूकोमा का इलाज’ - ओपन एंगल ग्लूकोमा - इस ग्लूकोमा में एन्टीग्लूकोमा आई ड्रोप्स द्वारा ग्लूकोमा को नियंत्रित किया जा सकता है और संभवतः सर्जरी की जरूरत से बचा जा सकता है या उसे कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। जो नजर इलाज शुरू करने से पहले चली गई हो, उसे वापस नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय रहते बीमारी का पता लगाना और इलाज कराना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। यह बहुत जरूरी है कि निर्धारित दवा का उपयोग नियमित रूप से किया जाए और आई ड्राॅप डालने में कोई चूक न हो। - क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा - इस बीमारी में लेजर बीम के उपयोग से अक्वेयस ह्नयूमर के बहाव के लिए नया छेद बना दिया जाता है। इस तकनीक को लेजर पेरीफेरल आईराडोटोमी कहते है। इसके बाद आँख के अन्दर के दबाव को, उचित दवा देकर नियंत्रित किया जाता है। यदि समय से इलाज कराया जाये तो इस प्रकार के ग्लूकोमा में कई मरीजों में लेजर के बाद अन्य किसी इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे रोगियों को समय समय पर नेत्र चिकित्सक से परामर्श लेकर आँखों के दबाव की जांच करवाते हुए उपचार जरुरी है। वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक (10 से 16 मार्च 2024) के उपलक्ष्य में आइए हम सभी मिलकर दृष्टि के इस गुपचुप चोर से रोशनी बचाने हेतु जनसाधारण के बीच इस रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाते चलें। डाॅ. सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी शर्मा सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा #DrSureshKPandeyKota #DrVidushiSharmaKota #SuViEyeHospitalKota #glaucoma #retina #oftalmologia #vision #ophthalmology #catarata #eyedoctor #eyecare #eye #cataract #ophthalmologist #cornea #eyes #optometrist #optometry #miopia #lasik #astigmatismo #a #eyesurgery #eyehealth #cataractsurgery #ojos #eyesurgeon #oftalmologista #oftalmologo #oftalmo #hipermetropia #diabetes #glaucomaawareness

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