Tuesday, October 1, 2024

फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्र बनाम असली डॉक्टरों का संघर्ष: जनता की सेहत पर संकट हाल ही में दैनिक भास्कर द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन ने एक बेहद चिंताजनक सच्चाई का खुलासा किया: राजस्थान मेडिकल काउंसिल, जयपुर, फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्र जारी कर रही है। ये फर्जी डॉक्टर्स बिना किसी सही मेडिकल प्रशिक्षण के मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह न केवल चिकित्सा पेशे पर कलंक है, बल्कि उन लाखों छात्रों और डॉक्टर्स के साथ अन्याय है, जिन्होंने सालों तक मेहनत करके इस मुकाम तक पहुंचने के लिए दिन-रात एक कर दिया है। असली डॉक्टरों का सफर: 12 साल का कठिन तप एक असली डॉक्टर बनने का सफर बेहद कठिन और लंबा होता है। सबसे पहले, छात्रों को NEET परीक्षा पास करनी पड़ती है, जिसमें हर साल 24 लाख से ज्यादा छात्र भाग लेते हैं। इसमें सफल होने के बाद, वे 4.5 साल तक मेडिकल कॉलेज में एक बेहद कठिन पाठ्यक्रम के साथ संघर्ष करते हैं। यह सिर्फ शुरुआत होती है। इसके बाद 1 साल की अनिवार्य इंटर्नशिप होती है, जहां उन्हें वास्तविक दुनिया के मरीजों के साथ काम करना पड़ता है। लेकिन यहां पढ़ाई खत्म नहीं होती। इस मेडिकल ग्रेजुएट को फिर से NEET PG जैसी कठिन परीक्षा पास करनी होती है ताकि वह स्पेशलाइजेशन कर सके। फिर 3 से 6 साल तक विशेषज्ञता या सुपर-स्पेशलाइजेशन की ट्रेनिंग करनी होती है। यानी कि कुल मिलाकर एक डॉक्टर बनने के लिए लगभग 12 साल या उससे ज्यादा का कठिन और तपस्वी सफर तय करना पड़ता है। यह सफर ठीक वैसा ही है जैसे भगवान राम एवं रामायण के पात्रों को 12 साल का वनवास सहना पड़ा था। असली डॉक्टरों की मेहनत के साथ अन्याय जब एक फर्जी प्रमाणपत्र के जरिये कोई अयोग्य व्यक्ति खुद को डॉक्टर बताता है, तो यह उन लाखों छात्रों और डॉक्टरों के साथ गंभीर अन्याय है जिन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। फर्जी डॉक्टर्स जनता की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं, जबकि असली डॉक्टर्स अपनी पूरी मेहनत, ज्ञान और अनुभव से मरीजों को ठीक करने के लिए संघर्ष करते हैं। भारत में हर साल 70,000 से ज्यादा एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं और राजस्थान मेडिकल काउंसिल हर साल 2,000 से ज्यादा डॉक्टरों को पंजीकृत करती है। यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि जो भी डॉक्टर पंजीकृत हो, वह पूरी तरह से योग्य हो और सही प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका हो। फर्जी डॉक्टर्स का मरीजों की सुरक्षा पर खतरा फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्र और अयोग्य डॉक्टर सीधे तौर पर मरीजों की जान को खतरे में डालते हैं। एक गलत निदान, गलत उपचार या गलत दवाओं का प्रिस्क्रिप्शन मरीज की जान ले सकता है। यह सिर्फ एक अनैतिक कृत्य नहीं, बल्कि यह मानव जीवन के प्रति आपराधिक लापरवाही है। क्या कर सकते हैं हम? 1. सख्त प्रमाणपत्र प्रक्रिया और सत्यापन हर मेडिकल प्रमाणपत्र जारी करने से पहले आवेदक की कड़ी पृष्ठभूमि जांच होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल योग्य व्यक्ति ही डॉक्टर बनें। 2. डिजिटलीकरण और ट्रैकिंग मेडिकल प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल और पारदर्शी बनाने की जरूरत है ताकि फर्जीवाड़ा रोका जा सके। 3. व्हिसलब्लोअर्स को प्रोत्साहन और संरक्षण जो लोग ऐसी गलत गतिविधियों के बारे में जानकारी रखते हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे आगे आकर इस धांधली का खुलासा करें, और उन्हें सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। 4. कड़ी सजा और कानून का सख्त पालन फर्जी डॉक्टर्स और प्रमाणपत्र जारी करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों। आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है! मरीजों को भी सतर्क रहना चाहिए। डॉक्टर की योग्यता की जांच करना उनका अधिकार है। अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए यह सुनिश्चित करें कि जो डॉक्टर आपको इलाज कर रहे हैं, वे सही मायने में योग्य हैं।
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