Wednesday, March 12, 2025
कोटा का करिश्माः एक नेत्र सर्जन की कलम से
मैं कोटा हूँ...संघर्ष से सफलता की मेरी अमरगाथा...
डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, प्रेरक वक्ता, साईक्लिस्ट,
नेत्र सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा.
मेरा परिचय क्या पूछ रहे,
मैं स्वप्नों का निर्माता हूँ,
शिक्षा, चिकित्सा, विरासत का,
मैं गौरवशाली पालक हूँ।
चंबल की कलकल धारा से,
मेरा आंचल सींचा जाता,
संघर्ष, सफलता और संकल्प,
मेरा हर पत्थर गाता....
मैं कोटा हूँ... मैं सिर्फ एक शहर नहीं, एक भावना हूँ, एक प्रेरणा हूँ, एक करिश्मा हूँ। मेरी पहचान सिर्फ मेरे नाम तक सीमित नहीं, मेरी आत्मा में इतिहास की कहानियाँ, संघर्ष की गाथाएँ और सफलता की अनगिनत दास्तानें समाई हुई हैं। मेरा नाम कोटिया भील के नाम पर रखा गया, एक ऐसा राजा जिसने युद्ध में अपना ताज खो दिया, लेकिन मेरे नाम के रूप में हमेशा के लिए अमर हो गया।
मेरी कहानी में वीरता और कर्मठता का अनूठा संगम है। वर्ष 1631 में, मुझे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने राव माधो सिंह को सौंपा, जिससे मैं एक स्वतंत्र रियासत बना। उनके वंशजों व कुशल राजपूत शासकों ने मुझे समृद्धि और शौर्य से सजाया, जो इतिहास के पन्नों में अमर है। ब्रिटिश शासन के दौरान मैं एक महत्वपूर्ण रियासत बना रहा। आज़ादी के बाद, मैं राजस्थान में विलीन होकर शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बन गया।
मैं चंबल के किनारे बसा वो शहर हूँ, जिसने शताब्दियों तक अपने भीतर इतिहास, संस्कृति, विज्ञान, कला और शिक्षा का अद्भुत संगम देखा है। मैंने साम्राज्यों को बनते और बिगड़ते देखा, स्वतंत्रता संग्राम की गूंज सुनी, औद्योगीकरण की आहट महसूस की, और फिर अपने ही उद्योगों को ढहते देखा।
लेकिन मैं कोटा हूँ... मैं गिरकर उठता हूँ, टूटकर सँभलता हूँ, और हर बार पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बनकर दुनिया के सामने उठ कर खड़ा होता हूँ। मैं कोटा हूँ... हर चुनौती से निखरकर निकला हूँ...
उन्नीस सौ अस्सी-नब्बे के दशक में जब जे.के. फैक्ट्रियों के बंद होने से मेरे आर्थिक ढाँचे पर गहरा आघात हुआ, तब लगा कि मैं अपनी रफ्तार खो दूँगा। हजारों परिवारों का सहारा छिन गया, रोजगार खत्म हो गए, और अनिश्चितता का अंधेरा गहराने लगा। लेकिन मेरी आत्मा में धैर्य है, मेरी मिट्टी में साहस है। मैं इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ। तभी मेरी गोद में एक ऐसा बीज बोया गया, जिसने मुझे शिक्षा की दुनिया में नई ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया। इंजीनियर श्री विनोद कुमार बंसल... वे खुद चल नहीं सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने विद्यार्थियों को उड़ना सिखाया। अपने शहर के उस घर की डाइनिंग टेबल से शुरू की गई आई.आई.टी. कोचिंग ने जब अखिल भारतीय रैंक-1 का विद्यार्थी दिया, तो पूरे देश की नजरें मुझ पर टिक गईं। यह मेरे पुनर्जन्म की शुरुआत थी। देखते ही देखते, एलेन, कॅरियर पॉइंट, रेज़ोनेंस, मोशन, राव अकैडमी जैसी कोचिंग संस्थाओं एवं मेरे सभी शुभचिन्तकों के सहयोग से मैं भारत की कोचिंग राजधानी बन गया। देश के प्रधानमंत्री ने मुझे ‘शिक्षा की काशी’ के गौरवशाली नाम से पुकार कर सम्मानित किया। हर वर्ष लाखों विद्यार्थी मेरी शरण में आते हैं, आई.आई.टी., नीट और अन्य परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, और अपनी मेहनत से डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बनते हैं।
लेकिन अब मेरी गोद में बसे मेरे कोचिंग विद्यार्थियों की संख्या में कमी आ रही है। ‘सुसाइड सिटी’ के नाम से मेरी आत्मा पर प्रहार कर मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास किये जा रहे हैं... जिससे मेरे अपने कोटावासी चिंतित हैं, मैं उनकी चिंताओं को समझता हूँ। लेकिन मेरा संदेश स्पष्ट है-देश के कोने-कोने से जो बच्चे मेरे पास आते हैं, उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानें, उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार दें। वे यहाँ सिर्फ पढ़ाई करने नहीं आते, वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए आते हैं, और मेरे शहर की हवा में बसने वाले उस संघर्ष के जज्बे से प्रेरित होते हैं, जिसने मुझे शिक्षा की काशी से सम्मानित होते हुए भारत की शिक्षा राजधानी बनाया।
मैं सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, मैं उद्योग, कला, संस्कृति और पर्यटन का भी ध्रुव तारा हूँ। मैंने साहित्यिक जगत में स्वर्गीय डॉक्टर मथुरालाल शर्मा जैसे इतिहास पुरुष को जन्म दिया है जिन्होंने मेरी व राजपुताना गौरवशाली विरासत को स्वर्ण अक्षरों में लिखकर संजोया है। राजनीति में भी दिग्गज नेता दिए हैं - श्री ओम बिरला, जो आज देश की लोकसभा के स्पीकर हैं, मेरी ही धरती पर पले-बढ़े हैं। मैंने नंदिनी गुप्ता को फेमिना मिस इण्डिया वर्ल्ड बनते देखा, श्रेया घोषाल की मधुर आवाज में अपना संगीत गूँजते सुना, ओयो रूम्स के संस्थापक रितेश अग्रवाल को कोचिंग विद्यार्थी के रूप में यहाँ पढ़कर उद्यमिता के गुर सीखते देखा, और मेरी गोदी में पली बढ़ी बिटिया अंजलि पिचाई को दुनिया के सबसे बड़े टेक लीडर सुंदर पिचाई की हमसफर बनते देखा। मेरी ही मिट्टी से निकलीं निकिता लालवानी जैसी महान साहित्यकार, जिनकी कलम मेरी कहानी को अमर बना रही है।
मैं चिकित्सा के क्षेत्र में भी पीछे नहीं हूँ। मेरा अपना कोटा मेडिकल कॉलेज हर साल हजारों डॉक्टर तैयार करता है, जो पूरे देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं में अपना योगदान देते हैं। मेरे यहाँ सिर्फ हाड़ौती ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के गुना, श्योपुर जैसे दूर-दराज के क्षेत्र से भी मरीज आते हैं और यहाँ से स्वस्थ होकर लौटते हैं। मेरे अस्पतालों में हर रोज नए जीवन बचाए जाते हैं, नई उम्मीदें जगाई जाती हैं। नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में भी मेरा विशेष स्थान है, और मैंने देश दुनिया के अनेकों युवा नेत्र विशेषज्ञों को यहाँ आकर प्रशिक्षण लेते देखा है। मेरी कर्मभूमी में नए सुधा मेडिकल कॉलेज संस्थान एवं भारत विकास परिषद द्वारा निर्माणाधीन कैंसर इंस्टीट्यूट भी अपनी नई यात्रा प्रारंभ कर रहे हैं। मैं होलिस्टिक हीलिंग का केंद्र बनकर मेडिकल टूरिज्म की नई इबादत लिखने को तैयार हूँ।
चंबल मेरी आत्मा है, जिसने न केवल मेरी प्यास बुझाई, बल्कि मेरे किसानों को समृद्ध बनाया। कोटा बैराज और जवाहर सागर डेम मेरे गौरव के प्रतीक हैं, जिन्होंने राजस्थान के कई हिस्सों को पानी दिया, फसलों को लहलहाया और हजारों परिवारों का पेट भरा। मेरी कोटा कचौरी की खुशबू देश-विदेश में फैल चुकी है। कोटा डोरिया की बुनाई मेरी पहचान है, जिसने देश-विदेश में अपने हुनर का परचम लहराया। कोटा स्टोन सिर्फ एक पत्थर नहीं, बल्कि मेरी मजबूत नींव है, जिसने अनगिनत इमारतों को शक्ति दी।
लेकिन मेरा भविष्य सिर्फ शिक्षा और उद्योग तक सीमित नहीं रह सकता। मुझे अपने पर्यटन की शक्ति को पहचानना होगा। मेरा चंबल रिवर फ्रंट, मेरा ऑक्सीजन सिटी पार्क, मेरा मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, मेरा किशोर सागर लेक, मेरा अभेड़ा महल, मेरा सिटी पैलेस म्यूजियम, मेरा गरड़िया महादेव, मेरी चंबल सफारी, - ये सभी मेरी धरोहर हैं, जो रणथंभौर टाइगर रिजर्व की तरह पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। मेरा सपना है कि मेरा नाम सिर्फ कोचिंग के लिए नहीं, बल्कि एक अद्भुत पर्यटन स्थल के रूप में भी लिया जाए। मुझमें होलिस्टिक हीलिंग का केंद्र बनकर मेडिकल टूरिज्म की अपार संभावनाएं छुपी हुई हैं। मेरी अपील है कि मेरे इन खूबसूरत स्थानों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाए, ताकि दुनिया मेरे प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर से परिचित हो सके।
निकट भविष्य में अब मैं एक नई उड़ान भरने के लिए तैयार हूँ। कोटा एयरपोर्ट मेरी नई पहचान बनने जा रहा है। मैं उन दिनों का इंतजार कर रहा हूँ, जब मेरे आसमान में विमानों की गूंज होगी, जब मेरी धरती पर दूर-दूर से यात्री उतरेंगे, जब मेरे मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में रणथंभौर की तरह सैलानियों की भीड़ होगी, और जब मेरा चंबल रिवर फ्रंट दुनिया के बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट्स में गिना जाएगा। इसके लिए युद्धस्तर पर प्रयास करना होगा, ताकि मेरा एयरपोर्ट सिर्फ एक नाम न रह जाए, बल्कि मेरे विकास का एक मजबूत आधार बन जाए।
मैं कोटा हूँ... मैंने हर मुश्किल को अवसर में बदला है, हर अंधेरे से रोशनी निकाली है, हर संघर्ष से जीत हासिल की है। मेरे यहाँ गणित के सबसे कठिन समीकरण हल होते हैं, मेरे यहाँ इंजीनियर और डॉक्टर तैयार होते हैं, मेरे यहाँ कलाकार जन्म लेते हैं, मेरे यहाँ साहित्य रचा जाता है, मेरे यहाँ संगीत की धुनें बसती हैं, और मेरे यहाँ राजनीति की दिशा तय होती है। मैं सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हूँ।
मुझे अपने भविष्य पर पूरा विश्वास है। मैं जानता हूँ कि मेरे कोटावासी मेरे साथ हैं। मैं जानता हूँ कि मेरे नेता मेरे विकास के लिए कार्य करेंगे। मैं जानता हूँ कि मेरे पर्यटन स्थलों को नई पहचान मिलेगी। मैं जानता हूँ कि मेरे एयरपोर्ट को वो पँख मिलेंगे, जिनसे मैं नई ऊँचाइयों तक उड़ सकूँगा। मैं जानता हूँ कि जो बच्चे मेरी गोद में पढ़ने आते हैं, वे यहाँ सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि जीवन के सबसे बड़े सबक भी सीखते हैं। मैं जानता हूँ कि मेरा करिश्मा कभी खत्म नहीं होगा, क्योंकि मैं कोटा हूँ... और कोटा का करिश्मा हमेशा जीवित रहेगा।
मैं कोटा हूँ, मैं कोटा ही रहूँगा,
हर युग में, हर समय में दिखूँगा,
संघर्षों की मिट्टी से बना हूँ,
पर सफलता का संगम लिखूँगा।
चंबल की लहरें भी मुझसे कहती हैं,
‘तू अडिग, तू महान है,’
सपनों की नगरी हूँ मैं,
मेरा हर कण एक नई उड़ान है।
मैं कोटा हूँ: हर चुनौती से निखरकर निकला हूँ....
डॉ. सुरेश पाण्डेय
लेखक, प्रेरक वक्ता, साईक्लिस्ट,
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